महाराणा कुम्भा जयंती पर कुम्भलगढ़, चित्तौड़गढ़, रणकपुर तथा उदयपुर के सिटी पेलेस व मोती मगरी में लगी ऐतिहासिक प्रदर्शनियां
सर्वांगीय मेवाड़ के निर्माता महाराणा कुम्भा
मेवाड़ राज्य की सीमाओं को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से आबू में अचलगढ़ (विक्रम सम्वत् 1509) व बंसतगढ़ का निर्माण करवाया। गोड़वाड़ क्षेत्र से सुरक्षा हेतु अजेय दुर्ग कुम्भलगढ़ (विक्रम सम्वत् 1515) का निर्माण एवं दुर्ग के चारों ओर 36 कि.मी. की परकोटे युक्त दिवार का निर्माण करवाया। ये निर्माण महाराणा कुम्भा की स्थापत्य अभिरूचि एवं राजनैतिक दूरदर्षिता का प्रमाण रहे। इसके अतिरिक्त चितौड़ दुर्ग का नवीनीकरण कर दुर्ग में प्रवेश हेतु पश्चिम की ओर दरवाजों और सुदृढ़ प्राचीर का निर्माण करवा दूर्ग का नवीन सुरक्षित प्रवेश मार्ग बनवाया। यही नहीं महाराणा कुम्भा के काल में चितौड़गढ़, अचलगढ,़ श्रीएकलिंगजी मंदिर, नागदा, कुम्भलगढ़, रणकपुर आदि में कई विश्वविख्यात मंदिरों का निर्माण व जीर्णोद्धार करवाया। चित्तौड़ दुर्ग में मंदिरों के अतिरिक्त जल आपूर्ति हेतु कुंडों, जलाशयों का निर्माण के साथ अपनी ऐतिहासिक विजय की स्मृति को बनाये रखने के लिये 9 मंजिला विजय स्तम्भ (मालवा विजय के उपलक्ष्य में) का निर्माण करवाया, जो भारतीय मूर्तिकला का अजायबघर भी कहलाता है। इन्हीं से संबंधित कई ऐतिहासिक जानकारियों एवं चित्रों आदि को प्रदर्शनी का हिस्सा बनाया गया है।
यह प्रदर्शनी सभी जगहों पर एक माह तक निरंतर रहेगी। मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर ही चित्तौड़गढ़ के कुम्भा महल में चित्तौड़ के सांसद सीपी जोशी व नगर परिषद सभापति सुशील शर्मा ने प्रदर्शनी का विधिवत शुभारंभ किया जहाँ भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग के वरिष्ठ संरक्षण सहायक सिद्धार्थ वर्मा व अन्य अधिकारीगण के अलावा शहर के कई जाने-माने लोग व पर्यटक उपस्थित थे।
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